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Ganesh Chaturthi Essay in Hindi : गणेश चतुर्थी पर निबंध पढ़ें

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Ganesh Chaturthi Essay (Nibandh) in Hindi :

Ganesha Chaturthi Essay
Ganesha Chaturthi Essay

गणेश चतुर्थी का शुभ पर्व हर वर्ष भाद्रपद महीने की शुक्ल चतुर्थी के दिन बड़ी धूम -धाम से मनाया जाता है। चतुर्थी के दिन गणेश जी की उत्पति हुई थी जिस कारण इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। गणेश चतुर्थी की पूजा करने से मन की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और घर में सुख –शांति बनी रहती है।

इस पवित्र त्योहार पर तड़के जल्दी उठकर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि के द्वारा गणेश जी का पूजन किया जाता है। इस पूजन में भगवान गणेश जी को 21 लड्डुओं का भोग चढ़ाया जाता है। पूजन के बाद नीची नज़र से चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है और ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है और ऐसा माना जाता है के इस दिन चन्द्रमा की तरफ नहीं देखना चाहिए।

इस दिन क्यों होता है चाँद को देखना अशुभ ? Ganesha Chaturthi Essay

गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखना अशुभ माना जाता है। इसके पीछे भी एक कथा जुडी है कथा के अनुसार एक बार चन्द्रमा ने भगवान गणेश जी के मोटे पेट का मजाक उड़ाया था जिस पर गणेश जी ने क्रोधित होकर चन्द्रमा को श्राप दिया था और चन्द्रमा का रंग काला पड़ गया और जो चाँद को देखेगा उस पर चोरी का आरोप लगेगा इससे चन्द्रमा भयभीत हो गया उसने श्राप से मुक्ति के लिए गणेश जी की आराधना करनी शुरू कर दी गणेश जी ने चन्द्रमा की आराधना से खुश होकर उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया सिवाए एक दिन के भादव मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के। इसीलिए माना जाता है के जो भी इस दिन चांद देखता है वह कलंक का भागीदार बनता है।

भग्वान गणेश जी की कथा (Ganesha Chaturthi Essay)  

कथा के अनुसार शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणेश जी की उतपत्ति माता पार्वती द्वारा अपने तन की मैल से की गयी थी। स्नान करने से पूर्व माता पार्वती ने गणेश जी को दरवाजे पर पहरेदार के रूप में खड़ा होने का आदेश दिया था के उनके स्नान करने तक किसी को भी अंदर नहीं आने की अनुमति नहीं होगी। उसी वक्त भगवान शंकर वहां पहुंच जाते हैं और जैसे उन्होंने अंदर प्रवेश करना चाहा गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। शिव के बार -बार समझाने पर भी गणेश नहीं माने आखिर शिव क्रोधित हो गए उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।

जब माता पार्वती को इसके बारे में पता चला तो वह भगवान शिव से क्रोधित हो गयी किसी तरह देवताओं ने माता का क्रोध शांत किया और उन्होंने भगवान शिव से गणेश जी को पुन: जीवित करने की दया अर्चना की।

भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया के वह उत्तर दिशा में उस प्राणी का सिर लेकर आएं जिसकी तरफ उसकी माता की पीठ हो शिव गणों को एक हाथी के बच्चे का सिर इस दशा में मिला तो उन्होंने हाथी के बच्चे का सिर ही ले लिया इस प्रकार भगवान शंकर ने हाथी का सिर गणेश जी की धड़ पर लगा उन्हें पुन जीवित कर दिया। भगवान शिव और देवताओं ने गणेश जी को वरदान दिया के सभी देवी –देवताओं की पूजा से पहले गणेश जी की पूजा की जाएगी ऐसा ना होने पर पूजा अधूरी मानी जायेगी

गणेश जी का मूषक वाहन कैसे बना ?

महामेरु पर्वत पर एक ऋषि रहता था वहां उसका आश्रम था उस ऋषि की पत्नी अतियंत सुंदर थी। एक दिन ऋषि वन में लकडियां लेने के लिए गया हुआ था तो वहां क्रोंच नामक गंधर्व वहां आ पहुंचा वह ऋषि की पत्नी को देखकर व्याकुल हो उठा और उसने उसका हाथ पकड़ लिया उसी वक्त ऋषि भी आश्रम आ पहुंचते हैं गंधर्व की इस दुष्टता को देखते हुए ऋषि उसे श्राप दे देते हैं। गंधर्व को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह ऋषि के पैरों गिरकर माफ़ी मांगने लगा ऋषि ने कहा मेरा श्राप अब वापिस तो नहीं लिया जा सकता किन्तु पृथ्वी पर मूषक बनकर श्राप भुगतने में ही तुम्हारी भलाई है।

ऋषि ने कहा के द्वापर युग में पराशर ऋषि के आश्रम भगवान गणपति गजनंद के रूप में अवतार लेंगे तुम उनका वाहन बनोगे और सदा ही सम्मानित किये जाओगे।

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