Environment day poem in Hindi पर्यावरण दिवस पर कविता
झुरमुट नहीं रहे पेड़ों के
और पोखर नहीं रहे
मेरे गांव में भी अब वो
देहाती तेवर नहीं रहे।
करमु -धरमु की कथा
सुनाते थे जो बच्चों को
बरगद के नीचे बसेरा किये
बाबा वो बटेसर नहीं रहे
यह सड़क जो धुल उड़ाती है
पहले घास भरी पगडंडी थी
लगते थे सुंदर खेत हरे
क्लेवर नहीं रहे
उस कत्थई पहाड़ की
छाती किसने छील दी
दिन ब दिन बिलाते पहाड़ों में
हवाओं के गीत वो मनहर नहीं रहे
नदियों को ‘फैक्ट्रियां लील गयीं
खेतों को खा गए हाइवे
है मेरे गाँव में अब
कोई भी बेघर नहीं रहा
जहां बतख डुबकी लगाते थे
बच्चे मुंगरी -रोहू पकड़ के लाते थे
मेरे गांव के वो ताल क्या हुए
नन्ही आंखों के समुन्द्र नहीं रहे
बदल दिया शहर ने इनको
धनकटनी करती, महुआ चुनती
फूलों सी महकती लड़कियों के
टेसू अब कीमती जेबर नहीं रहे
पलाश वन से घिरे गांव में
कत्ल कर दिए गए पेड़ सभी
धुप में जलते बटोही के लिए
पीपल बरगद से तरुवर नहीं रहे
गर्मी में सोते चादर ओढ़ कर
दसई में ठुठराते थे
बदली दुनिया संग मेरे गांव में
पहले जैसे मौसम वो सुंदर नहीं रहे।
सरसों के खेत में उड़ती तितलियां
सावन में इंद्रधनुष की रंग रलियाँ
सब तितलिस्म छू मंत्र हुए
काली चिरैया के घने घरौंदे
वो दरख्त सनोबर नहीं रहे। – रशिम शर्मा
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