फूलों का राजा हूं में
नेहरू का प्यारा हूं में
कांटों में हूं पलता
रहता हूं हर समय खिलता
देवों के सिर चढ़ शोभा पाता
मस्ती में झूमता हूं रहता
लूट जाने पर भी खुशबु है देता
मुझ से ही बनती है गुलुकंद
अगर करोगे मुझ से प्यार
अपना अस्तित्व भी दूंगा वार
मुझसे प्यार करलो यार
यहां रहना दो दिन चार (लेखक – वीरेन्द्र शर्मा)
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