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Poem on Corruption in Hindi भृष्टाचार पर कविता

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Poem on Corruption in Hindi

देश के माथे पर कलंक है भृष्टाचार

कालेधन का जन्मदाता है भृष्टाचार

देश की तरक्की एवं खुशाहाली में रुकाबट है भृष्टाचार

हर रोज मंहगाई को बढ़ाता है भृष्टाचार

देश की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहा है भृष्टाचार

देश में धरती से पाताल तक पहुंच चुका है भृष्टाचार

रावण की भांति देश की अर्थव्यवस्था को खोकला कर रहा है भृष्टाचार

देश की अर्थव्यवस्था का छीना छल्ली कर रहा है भृष्टाचार

देश में चपड़ासी से लेकर बड़े बाबू तक फैला रहें हैं भृष्टाचार

फनियर सांप की तरह समूचे देश में फैन फैलाये बिठा है भृष्टाचार

सच्चाई, ईमानदारी और चरित्रवान बनने से खत्म हो सकता है

भृष्टाचार  (लेखक – प्रदीप रामपाल)

अन्य कविताएं – 

  1. पर्यावरण संरक्षण पर कविता
  2. शांति पर कविता

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