आजादी दिवस पर कहानी – प्रेम आज सुबह बहुत जल्दी तैयार हो गया था उसका स्कूल उसके घर से लगभग 1 किलोमीटर दूर था इसलिए वह रोज अपनी साइकिल से ही स्कूल जाता था अपने स्कूल की ड्रेस पहन कर वह अपने घर से स्कूल के लिए निकला उसने पतंगी कागज से बनाए एक तिरंगे झंडे को अपनी साइकिल के हैंडल में लगाया और मां को आवाज देते हुए कहा मैं स्कूल जा रहा हूं मां मां तेजी से दरवाजे की ओर आते हुए रोज की तरह आज भी उपदेश देते हुए बोली धीरे धीरे जाना बेटा तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो मां मैं धीरे-धीरे हो जाऊंगा।
प्रेम घर से बाहर गली पार करके सड़क पर आकर तेजी से साइकिल के पेडल मारने लगा उसे स्कूल पहुंचने की जल्दी थी अभी वह कुछ दूर ही जा पाया था कि अचानक उसे आगे भीड़ लगी दिखाई दी उसके मन में भी यह देखने की जगह से हुई कि भीड़ लगने का कारण क्या है उसने अपनी घड़ी में समय देखा अभी ध्वजारोहण और भाषण प्रतियोगिता में एक घंटा बाकी था उसने अपनी साइकल रोग की और भीड़ को चीरकर जैसे ही झांक कर देखा उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई मोहित सड़क सड़क पर पड़े तड़प रहे थे वह प्रेम को ट्यूशन पढ़ाते थे उनके सिर से खून बह रहा था इतनी भीड़ होने पर भी कोई उनकी सहायता के लिए आगे नहीं बढ़ रहा था।
उसने देखा कि कई लोग तो अपने मोबाइल से इस घटना का वीडियो बना रहे थे उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ना जाने क्या सोचकर उसने जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया जाए तो मेरे सर जी है क्या हो गया इन्हें उसकी बात सुनकर भीड़ में से ही किसी ने कहा कि किसी गाड़ी वाले ने इनको पीछे से टक्कर मार दी प्रेम ने तुरंत 18 वाले को रोककर मोहित सर को उस में लिटाया और उन्हें पास के एक करना नर्सिंग होम में ले गया डॉक्टर साहब ने मोहित सर के सर से लगातार बह रहे खून को साफ कर ड्रेसिंग की और फिर कुछ दवाइयां देते हुए उनसे कहा आप तो दीपक हैं दूसरों को शिक्षा देते हैं फिर आप खुद ही बिना हेलमेट के बाइक चलाते हैं यदि आज आप के सर में हेलमेट लगा होता तो आपके इतनी चोट नहीं लगती।
डॉक्टर की बात सुनकर मोहित सर बोले आप सही कह रहे हैं डॉक्टर साहब गलती मेरी है आगे से मैं जब भी बाइक चला लूंगा तो हेलमेट जरूर पहन लूंगा फिर प्रेम किया और देख कर बोले बेटा आज तुम्हारे का नहीं मेरी जान बच पाई है कुछ पालनो करम है फिर बोले लेकिन तुम तो अपने स्कूल जा रहे थे ना तो मैं तो स्कूल की देर हो गई है तुम स्कूल जाओ बेटा मैं घर पर फोन करके अपनी पत्नी को बुला लेता हूं यह कहकर उन्होंने एक बार फोन करके सारी घटना अपनी पत्नी को बता दी मोहित सर की बात सुनकर उसने अपनी साइकिल उठाई और स्कूल की ओर चल पड़ा रास्ते में कद्दू दूसरा स्कूल पड़ता था जब वह उस स्कूल के पास से गुजरा तो उसने देखा कि वहां झंडा रोहन होने जा रहा है अचानक उसे ध्यान आया कि जब तक वह अपने स्कूल पहुंचेगा तब तक कब है झंडारोहण राष्ट्रगान हो चुका होगा उसने अपनी साईकिल किनारे खड़ी की और स्कूल के गेट पर खड़े होकर सभी के साथ राष्ट्रगान गाने लगा राष्ट्रगान पूरा होने के बाद वह फिर से अपनी साइकिल लेकर अपने स्कूल की और जल्दी आ जाए स्कूल पहुंचा तो सच में ध्वजारोहण और राष्ट्रगान हो चुका था और भाषण प्रतियोगिता आरंभ हो चुकी थी।
प्रेम ने अपनी साइकिल खड़ी की और सबसे पीछे जाकर खड़ा हो गया लेकिन प्रधानाचार्य जी ने उसे देख लिया उन्होंने उसे सारे से पैसा आने के लिए कहा प्रेम चुपचाप उनकी सीट के पीछे जाकर खड़ा हो गया भाषण प्रतियोगिता के प्रतिभागी का भाषण समाप्त हो जाने के बाद प्रधानाचार्य जी माय के पास आकर बोले प्यारे बच्चों आज हम सब स्वतंत्रता दिवस को बहुत ही उत्साह के साथ मना रहे हैं लेकिन हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाह भी करने की आदत डालनी चाहिए कुछ अपान रोककर उन्होंने फिर कहा आज का दिन हम सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है न जाने कितने भारतीयों ने अपने जीवन की आहुति भारत मां को आजाद कराने के लिए दीदी लेकिन आज के देना यदि कोई समय का ध्यान नहीं रखता है तो निश्चय ही वह अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं है इसका उदाहरण हमारे विद्यालय का एक छात्र प्रेम है जिसने आज के दिन भी समय पर आने की कोशिश नहीं की उन्होंने प्रिंसेस की सफाई देने को कहा।
प्रेम नजरे नीचे जो कई धीरे धीरे माई की और बड़ा पास पहुंचे कर उसने बोला शुरू किया मैंने आज जानबूझकर स्कूल आने में देरी नहीं की सर जी मैं तो समय से एक घंटा पहले ही निकला था था कि आज समय से कार्यक्रम में पहुंच सकूं लेकिन रास्ते में मुझे ट्यूशन पढ़ाने वाले सर जी दुर्घटनाग्रस्त सड़क पर तड़पते हुए मिले उनके चारों और जमा भीड़ ने डॉक्टर के पास ले जाने की जगह मोबाइल से वीडियो बना रही थी मैंने ऑटो करके उन्हें पास के नर्सिंग होम में पहुंचाया जाए मोहित सर ने कहा कि मैं ठीक हूं तुम अपने स्कूल जाओ तब मैं स्कूल के लिए चल पड़ा रास्ते में पड़ने वाले एक स्कूल में ध्वजारोहण होने जा रहा था मैंने वही रोककर उसे स्कूल के राष्ट्रगान में भाग लिया और उसके बाद अपने स्कूल तक पहुंच पाया सारी दास्तान सुनाते सुनाते उसकी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगी फिर भी यदि आप मुझे गुनाहगार मानते हैं तो आप जो भी चाहे मुझे सजा दे सकते हैं जय कहकर प्रेम ने कमीज की आस्तीन से अपने आंसू पहुंचे और प्रधानाचार्य जी की सीट के सामने जाकर खड़ा हो गया सारे स्कूल में सन्नाटा छा गया था किसी के मुख से कोई भी शब्द नहीं निकल रहा था।
लगभग आधे मिनट के बाद अब प्रधानाचार्य जी अपनी सीट पर से उठे और बोले प्रेम के साथ घटी इस घटना से आज मैंने एक सबक लिया है कि बिना जानकारी के किसी पर भी कोई आरोप नहीं लगाना चाहिए प्रेम ने आज सिद्ध कर दिया है कि विपत्ति में दूसरों की सेवा ही व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य है असली देश प्रेम भी वही है मुझे अत्यंत ख़ुशी है कि ऐसा वीर और साहसी बालक हमारे स्कूल का छात्र है – डा देशबंधु शाहजहांपूरी
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