अतीत की पीड़ा का बोझ – हिंदी कहानी – यह दास्तां दस साल पहले की है। एक संपन्न परिवार में उनके बेटों ने पुलिस को शिकायत देकर कहा कि हमारे घर के बेसमेंट में एक नन्ही- सी बहन को हमारे माता-पिता ने कैद करके रखा है। जब पुलिस वहां पहुंची तब देखकर सब दंग रह गए। बेहद गंदे, अंधेरे, सुने, चूहों से भरे कमरे के एक कोने में 10 साल की बच्ची को कैद करके रखा था।

इस बच्ची की देखभाल व इलाज एक हॉस्पिटल में कई साल चला। इस समय यह बच्ची 20 साल की हो चुकी है। वह यह नहीं जानती कि उसके पेरेंट्स ने उसे कैद में किसलिए रखा और इस बात को वह याद भी नहीं करना चाहती आज जब भी कोई उससे कोई पूछता है कि तुम्हें बीते दिनों की यादें परेशान करती है क्या? तो वह कहती है कि यदि मैं पिंजरे की कैद को याद करूंगी अर्थात बीते जख्मों के साथ लेकर चलूंगी तो सोच – सोच कर दर्द होता रहेगा और नई सोच नया वक्त और नई खुशियों का एहसास ही नहीं कर पाऊंगी सोचो रिश्ते घाव क्या इंसान को कभी आगे बढ़ने देते हैं?
उसने आगे कहा कल का पीड़ा भरा बोझ पैरों में बंधे पत्थरों समान होता है जो आगे बढ़ने नहीं देगा अब या तो पत्थरों से बंधे बोझ को घसीट कर चलो या फिर इनसे खुद को छुड़ा लो परंतु मुझे तो सब कुछ भुला कर चलना है आगे बढ़ना है वह सब कुछ भूल कर जो पहले मेरे साथ हो चुका है इसलिए मैंने अपने आप को बीते कल से आजाद कर लिया मेरा बीता हुआ कल मर चुका है आने वाला कल अभी आया नहीं मेरे पास केवल आज है और मैं कैसे खुश रहना चाहती हूं अब कोई अंधेरा नहीं कोई बेसमेंट नहीं कोई पिंजरा नहीं और कोई डर नहीं मैं आजाद हौंसलों के पंखों के साथ गगन में उड़ना चाहती हूं क्योंकि आज मेरी आंखें सपनों से और मन हौसलों से भरा है।
बीते कल को खींचकर आज सामने रखेंगे अर्थात डर , दुर्बलताएं, प्रताड़ना, आतंक, भेदभाव जुल्म, अंधेरा, सूनापन आदि याद आते रहेंगे तो रोते ही रहेंगे लेकिन दृढ़ निश्चय और बुलंद हौसलों की रोशनी के आने से जैसा मेरे जीवन में से गायब हो चुके हैं परंतु फिर भी इस वक्त मन के हौसले को बनाए रखना बहुत जरूरी है।
मुझे तो पानी सी रवानी बनकर बहना है बेफिक्र तितली सी बनकर उड़ना है चहकना है वह सब गोरिया की तरह जमाने भर की बदमिजाजीयों से हटकर दूर रहती है यह धोखे और प्रेम भरे झूठे उजालों की पहुंच से परे छलावे की खौफनाक दुनिया से दूर कहीं शांतमयी वातावरण में रहकर आज को खुशनुमा बनाना है।
हमें भी बीती घटनाओं, परेशानियों , बदले की भावना, ईर्ष्या आदि की घटनाओं को दूर फेंक कर दूर कर देना चाहिए तभी मन हल्का होगा और आगे बढ़ पाएंगे जिस किसी ने भी हमारे साथ भला बुरा व्यवहार किया है वह उनसे बदला लेना है ना ही उनके गलत व्यवहार पर सवाल उठाना है।
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