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हिंदी कहानी – तीन वरदान

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हिंदी कहानी – तीन वरदान God story in Hindi

पुरातन कहानियां हमें बहुत सीख देती है। दादी –  नानी की कहानियां कितनी शिक्षाप्रद होती थीं। बेशक उस वक्त समझ नहीं आती थी पर अब जब भी कोई कहानी जा सीख याद आती है तो जीवन जीने के मायने समझ में आते हैं। आज मैं आपसे एक कहानी सांझा कर रहा हूं उम्मीद है आपको भी इस कहानी से प्रेरणा मिलेगी।

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बहुत ही पुराने समय की बात है हरिप्रसाद नाम का आदमी काम ढूंढने के लिए दूसरे गांव जा रहा था। रास्ते में बड़ी नदी पड़ती थी वह नदी के पुल से गुजर रहा था तो उसे किसी की चीखें सुनाई दी उसे कोई नजर नहीं आया पर चीखने का शोर काम नहीं कम हो रहा था उसने पुल के नीचे देखा तो एक नाव डूब रही थी।

हरिप्रसाद ने पुल के ऊपर से नदी में छलांग लगा दी तैरने में वह कुशल था उसने जल्दी-जल्दी दो बच्चों को पीठ पर बिठाया और एक आदमी का हाथ पकड़ कर उसे भी खींचकर किनारे पर ले आया वह फिर नदी में गया और इस बार एक औरत और उसके दूध मुहे बच्चे को बचाकर किनारे पर ले आया। फिर अब आप नदी में तैरता हुआ गया और नाविक जो नाव के नीचे आया हुआ था उसे निकाला और किनारे पर लाकर आधे मुंह लेटा कर उसके अंदर चले गए पानी को बाहर निकाल कर उसे होश में लाकर अपने कपड़े सुखाने लगा सभी उसका धन्यवाद कर रहे थे उसने कहा यह तो मेरा कर्तव्य बनता था।

हरिप्रसाद कपड़े सुखा कर अपने रास्ते निकल पड़ा अभी कुछ ही कदम चला होगा कि उसकी आंखों के सामने अचानक बहुत रोशनी हो गई जिससे उसकी आंखें चुंधिया गई तभी उसके कानों में एक मधुर आवाज आई वत्स, आंखें खोलो ! तुम अपनी जान की परवाह ना करते हुए सभी की जानें बचाई है जो लोकसेवा बिना किसी लालच के करते हैं वह मुझे बहुत प्रिय होते हैं।

हरिप्रसाद ने धीरे-धीरे आंखें खोली उसके समक्ष संपूर्ण सृष्टि चलाने वाले साक्षात भगवान खड़े थे। हरिप्रसाद प्रभु के चरणों में गिरकर रोने लग पड़ा तभी हरिप्रसाद को भगवान बोले ” वत्स, मैं तुम्हें तीन वरदान देना चाहता हूं घर जाना अपनी पत्नी के साथ विचार कर जो भी तीन बार मांगोगे वह पूर्ण होंगे। जो भी वर तुझे चाहिए होंगे मांग लेना इतना कहते ही जगदीश्वर आलोप  हो गए हरिप्रसाद खुशी से हैरान हुआ घर की ओर भागा।

घर पहुंचते ही सारी बात अपनी पत्नी सुलेखा को बताई सुलेखा बहुत खुश हुई पर उसे पूर्ण विश्वास नहीं हो रहा था दोनों चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि क्या मांगा जाए?

हरिप्रसाद बोला सुलेखा तीन वरदान है जो मर्जी मांग लो चलो ऐसा करते हैं एक वरदान मांग कर पहले चेक करते हैं कि कुछ मिलता भी है या नहीं।

मेरा दिल कुछ चटपटा गर्म गर्म खाने को करता है बस फटाफट समोसा मिल जाए पत्नी के मना करते करते हरिप्रसाद ने समोसा मांग लिया।

पल भर में हरिप्रसाद और सुलेखा के सामने समोसा आ गया।

हरिप्रसाद तो बहुत खुश था कि जो मुंह से निकला वह चीज़ उसके सामने आ गई सुलेखा गुस्सा हो गई और बोलने लगी कि एक समोसे के लिए एक वरदान आपने कम कर लिया कुछ और नहीं मांग सकते थे काम के ना काज के दुश्मन अनाज के।

यह भी कोई वस्तु थी मांगने वाली मैंने आपके साथ शादी ही क्यों की।

हरिप्रसाद अपनी गलती पर पछताने की बजाय गुस्से में बोला मेरी बेइज्जती कर रही हो मैं तुम्हारा पति परमेश्वर हूं मैं चाहता हूं जैसे यह समोसा तुम्हारी नाक से चिपका जाए।

उसी वक्त में समोसा हवा में उछला और सुलेखा की नाक से चिपका गया सुलेखा ने पहले तो उतारने की कोशिश की पर समोसा हिला तक नहीं अब वह बहुत जोर जोर से रोने लगी आपने यह क्या कर दिया मैं अब घर से बाहर नहीं जा पाऊंगी तो सभी लोग मेरी और देख देख कर हँसेंगे हमारे घर कोई आएगा तो उसके सामने कैसे जाऊंगी मेरे पास अब मरने के सिवा और कोई रास्ता नहीं।

हरिप्रसाद को अपनी इस मूर्खता भरी करने पर बहुत दुख हुआ कि मैंने गुस्से में आकर यह क्या कर दिया अब तीसरा और आखिरी वरदान जही मांगना पड़ा के सुलेखा के नाक से समोसा उतर जाए। समोसा तो उतर गया पर ईश्वर के लिए तीन वरदान निष्फल चले गए।

इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि उस प्रभु ने हम सबको वरदान दिए हैं किसी के पास लक्ष्मी की कृपा ज्यादा है किसी के पास कम है यह वरदान ही तो हैं।

धन को अर्थ भी कहते हैं अर्थ से अगर सही काम लिया जाए तो परमार्थ बनता है और अगर सही काम ना लिया जाए तो अनर्थ होता है।

वरदान से मिले धन को परमार्थ के कामों में लगाया जाए तो आत्मा भी खुश और परमात्मा भी खुश।

उदय चंद्र लुदरा

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